रामायण के कुछ अशं कलियुग में (मोर्डेन रामायण) - 1 Kalpana Sahoo द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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रामायण के कुछ अशं कलियुग में (मोर्डेन रामायण) - 1

            जैसे की आप सब जानते हैं की त्रेतया युग में राम और सीता की गाथा को रामायण रूपरेख् देके बर्णना किया गया था । सीफ् राम और सीता नहीं, उनके साथ जो भी महजुद् थे उस् बक्त हम सबके बारे में पुराणों में पढतें हैं । मगर आज में उसी रामायण के कुछ अशं को लेकर कलीयुग के आड् में कुछ नया दिखाना चाहती हुं । कथा वही रहेगी पर अन्दाज् कुछ नयी होगी । हर बात की नयी उमीदे नयी सोच जाग गयी है । इसलिए में सोची की क्युं ना हम कुछ नया बनाये ! ज्यादा कुछ नाबताके सीधा काहानी के ओर बढते हैं ।

            रामायण में बर्णना कि गयी है की राजा दशरथ के तीन पत्नीयां(कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा) होने के बाबजुद भी वो पिता नहीं बन पा रहे थे । वो पुत्र प्राप्त केलिए एक यग्यं करबाये । और उसी दौरान जो जल् मिला उन्हे वो लेके अपनी तीन रानी को पीने केलिए दीये । तीन पत्नीयां उसको पीने के बाद उनके चार पुत्र हुये । कौशल्या की पुत्र राम, कैकेयी की पुत्र लक्षमण और सुमित्रा की दो पुत्र- भरत्,शतृघ्न जन्म होने के बाद राज्य में यसन हुआ । प्रजा बहत खुस हुये । धीरेधीरे चार बच्चें बडे हुये । आश्रम में ज्ञान प्राप्त किये । फिर योबन में पैर थामें । तभी एक स्वयम्बर में पर्शुराम के धनू भंग करके सीता की गले में हार पेहनाके उनको पत्नी के रूपमें श्वीकार किये थे । फिर घर आने के बाद राम को राजा दशरथ राजा बनाने की घोषना किये । 

            राम राजा होगें ये बाते सुनके मन्थरा कैकेयी को कुमन्त्रणा दि । जिसलिए कैकेयी दशरथ से जाके दो बर मागीं सत्य करबाके । पेहला है उनकी पुत्र भरत राज सिहांसन में बैठेगें और दुसरा ये है की राम चौदा साल बनबास् जायेगें । दशरथ सत्य करचुके थे इसलिए उनको कैकेयी की सर्त मानना पडा । वही हुआ राम चौदा साल बनबास गये । 

           कुछ किताबे में यैसा भी लिखा है की दो पक्षी आपस में बातें कर रहे थे की कल जो राजा होगा, जरूर उसका मत होगा । राम के मृत्यु होगा ये सोचके दो पक्षी रो रहे थे । कैकेयी को पक्षीयों की बातें समझने की बरदान प्राप्त हुई थी । वो इन सब बातों को सुनने के बाद अपनी पुत्र को राजा करबाने केलिए दशरथ से सत्य करबायी और बाद में वही हुआ जो वो चाहती थी । राम बनबास् गये ।

            पुत्र की जाने के बाद दशरथ के मत हुई । उनको ये साप मिला था श्रबण कुमार के अन्धें मा-बाप से की वो जैसे अपने बेटे केलिए तडपे हैं दशरथ भी एक दिन उनके पुत्र के तङप में अपना जान जायेगा । और ये भी हुआ था रामायण में लिखा गया हैं । 

            राम बनबास् में जब गये थे उनके साथ अपनी पत्नी सीता और भाई लक्षमण भी गये । लक्षमण उनके भाई को कभी अकेला नहीं छोडते थे । हमेशा उनके पासपास् रेहते थे । वो सब जाके एक जगंल में रहे । छोटा सा कुडिया बनाये । वहींपे चौदा साल बिताना है उन्हे ।

अब हमारे मङन् रामायण के और चलते हैं । कुछ दिन यैसे बितगया । सबको पता चल चुका है की राम बनबास् गये हैं । राबण सायद पेहले राम के शत्रृ था इसलिए वो कई राक्षस भेजा था पर मारने में कामीयाब नहीं हुआ । बाद में उसकी बेहेन सुपणाखा को भेजा था पर उसको लक्षमण से प्यार होगेयी । लक्षमण के बडा भाई राम इसलिए वो उनको कुछ नहीं कर रही थी । एक दिन सुबह लक्षमण कुडिया के आगंन में उगाया हुआ बाग के अन्दर टेहेल रहे थे । तभी राबण का बेहेन सुपणाखा चुपके से आई और लक्षमण को डरादी । फिर बोली......

 सुपणाखा :- लक्षमण ! क्या कर रहे हो ? 

 लक्षमण :- घर के अन्दर मछर बहत है इसलिए बाहार बगीचा में रेहेने केलिए सोच रहा हुं ।

 सुपणाखा :- नहीं तुम झूठ बोल रहे हो ।

 लक्षमण :- नहीं सच् ।

 सुपणाखा :- झूठ, झूठ, झूठ । सच बताउोना क्या कर रहे थे ?

 लक्षमण :- सच बताऊँ क्या ?

 सुपणाखा :- हाँ सच बोलो ।

 लक्षमण :- सच ये है की, में तुम्हारा ही इन्तेजार कर रहा था । 

 सुपणाखा :- पर क्युं ? आज तो में नहीं बतायी थी आने केलिए तुमको !

 लक्षमण :- तुम्हारी नाबोलने से भी मुझे तुम्हारी मन की बातें पता चल जाती है । इसिलिये तो में तुमको एक surprise देने केलिए सोचके रखा हुं ।

 सुपणाखा :- surprise ! फिर मेरे लिये ? 

 लक्षमण :- हाँ मुहँ बन्द करो, बरना मछर मुहँ में घुस जायेगें । 

 सुपणाखा :- कोन सा surprise ? please जल्दी बोलोना । 

 लक्षमण :- इतनी जल्दी क्या है प्रिये ? अपेक्षा की फल मिठा होता है । ठीक् है, अभी तुम आखं बन्द करो । में तुम्हे कुछ दुगां ।

 सुपणाखा :- मुझे आखं भी बन्द करनी पडेगी क्या ? ठीक् है, आखं बन्द की, अब तो बतादो क्या है ?

 लक्षमण :- हात दिखायो अपना ।
 
 सुपणाखा :- में तो आखं बन्द करके बैठी हुं इसलिए मुझे कुछ नहीं दिख रही है, पर तुम्हे भी क्या नहीं दिख् रहा है । तुम कुछ देने केलिए बोले इसलिए में तबसे हात दिखाके बैठी हुं । दोना क्या देना है तुम्हे ?

 लक्षमण :- दे रहा हुं बाबा, ये लो । 

 (लक्षमण सुपणाखा की हात में एक मलम थमा दी ।)
 
 सुपणाखा :- अब आखं खुलुं क्या ?

 लक्षमण :- हाँ । 

 (सुपणाखा हात में मलम देखके चोकं जाती है ।)

 TO BE CONTINUE........